प्रिय कवि –सूरदास व उनका काव्य
सूरदास जी के जीवन का परिचय :भारत में हिंदी साहित्य में कई कवि व साहित्यकार हुए है | उनमे से एक सूरदास भी है | साहित्यकारों में इन्हें भक्त शिरोमणि की उपाधि से नवाजा गया है | इनका जन्म सम्वत 1535 में हस्तिनापुर (वर्तमान में दिल्ली) के निकट सीही गाँव ने हुआ था | यह जाती के ब्रामण थे | इनके जन्म से ही अंधे होने तथा बाद में अंधे होने के बारे में विद्वानों में विरोधाभास है | इसके अलावा न ही इनकी शिक्षा दीक्षा के विषय में ही कोई पुख्ता जानकारी है | इतना अवश्य है कि साधुओं की संगति के बल पर उन्होंने बहुत ज्ञान अर्जित कर लिया | युवावस्था उन्होंने आगरा और मथुरा के बीच गौ घाट पर रहने वाले साधुओं के साथ व्यतीत की.
सूरदास जी के जीवन में संगीत का आगमन :
संगीत के प्रति इनकी बचपन से ही रूचि थी | इसी कारण यह समय मिलते ही यह तानपूरा पर शेर गुनगुनाने लगते थे | इसी स्थान पर उनकी मुलकात महाप्रभु स्वामी बल्ल्ल्भाचार्य जी से हुई | इस मुलकात के दौरान उन्होंने उन्हें अपने मत से दीक्षित कर और श्रीमद्भागवत की कथाओ को पदों में रूपांतरित करने को कहा | यही उन्होंने सूरदास को श्रीनाथ जी के मंदिर की कीर्तन सेवा की जिमेदारी भी दे दी.
सूरदास जी के संगीत से अंतिम जीवन का सफर का वर्णन :
वैरागी सूरदास इसके बाद से कीर्तन में सम्मिलित हो गए | उन्होंने कृष्ण की लीलाओका गान किया | बल्लभ सम्प्रदाय में बाल कृष्ण की उपासना को प्रधानता दी जाती थी | इसलिए सुर को वात्सल्य और श्रृंगार इन दोनों रासो का ही वर्णन अभीष्ट था | श्रीनाथ जी की कीर्तन सेवा में ही सूरदास ने अपना पूरा जीवन बिता दिया | रोजाना नए पद की रचना करना और कीर्तन गाना ही उनके जीवन का एकमात्र कार्य था | यही कारण है की वह अंतिम समय तक कृष्ण लीला के पद गाते रहे | सूरदास जी की मृत्यु संवत 1640 में पारसोली ग्राम में हुई.
सूरदास जी के काव्य शैली का वर्णन :
सूरदास ने तीन मुख्य ग्र्न्तो की रचना की | ये ग्रन्थ है: सूरसागर,सूरसारावली और सहित्यलहरी | इनमे सूरसागर सूरदास जी की सर्वश्रेष्ठ एवं बड़ी रचना है | इनमे कृष्ण लीला सम्बन्धी विभिन प्र्शंगो के पद संग्रहित है | सूरदास के कुल पदों की संख्या सवा लाख बताई जाती है | लेकीन अभी तक प्राप्त पदों की संख्या दस हजार की शुरुआत अधिक नहीं है | इस ग्रन्थ में सूरदास जी ने बालक कृष्ण हाथ में माता यशोदा द्वारा दिए गए नवीनतम अर्थात मक्खन को लिए हुए अपने सौन्दर्य से विशेष आकर्षण प्रकट कर रहे है.
सोभित कर नवनीत लिए.
घुटुरुनी चलत रेनू तन मंडित दधि मुख लेप किये.
सूरदास जी द्वारा कृष्ण जी के बाल लीलाओ की पंक्तिया :
सूरसागर में बाललीलाओ का जितना सरस व स्वाभाविक चित्रण किया गया है उतना अब तक हिंदी का कोई अन्य कवि नहीं कर सकता है इस बात की परख हम उनके निम्नलिखित एक पदों से कर सकते है.
सूरसागर में बाललीलाओ का जितना सरस व स्वाभाविक चित्रण किया गया है उतना अब तक हिंदी का कोई अन्य कवि नहीं कर सकता है इस बात की परख हम उनके निम्नलिखित एक पदों से कर सकते है.
मैया कबहि बढेगी चोटी
किती बार मोहि दूध पीवत भई यह अजहूँ है छोटी
तु तो कहति बल की बैनी ज्यो है लंबी मोटी |सूरदास ने अपने काव्य में श्रृंगार,हास्य , करुणा तथा वात्सल्य आदि रासो का बखूबी प्रयोग किया है |यही नहीं अनुप्रास, उपमा, उत्प्रेक्षा, यमक सहित कई अलंकारो का सुन्दर चित्रण भी उनकी रचनाओ में निहित है.
No comments:
Write Comments